BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।

अथवा
क्या भारतीय दर्शन निराशावादी हैं? विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय दर्शन के उद्गम एवं स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
अथवा
भारतीय दर्शन का स्वरूप क्या है? विवेचना कीजिए।
अथवा
भारतीय दर्शन का विकास कैसे हुआ? विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
अध्यात्मवादी दर्शन के रूप में भारतीय दर्शन की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

भारतीय दर्शन के विषय में जानने से पूर्व यह आवश्यक है कि दर्शन क्या है इस विषय में जाना चाहिए। वर्तमान समय में जितने भी विषय या सामाजिक विज्ञान (कला) का जन्म हुआ उन सबका जन्म दर्शनशास्त्र से ही हुआ।

ग्रीक दार्शनिक अरस्तू (Aristotle) ने कहा मनुष्य विवेकशील पशु है ( A man is a rational animal) मनुष्य में विवेकशीलता का कारण उसकी बुद्धि होती है क्योंकि मनुष्य जो भी कार्य करता है वह सोच-समझकर करता है। मनुष्य पशुओं से श्रेष्ठ इसलिए माना जाता हैं क्योंकि उसके पास बुद्धि है वह सही गलत का निर्णय कर सकता है। इसी बुद्धि द्वारा उत्पन्न ज्ञान को जब हम विश्व, आत्मा, जीव को जानने के रूप में करते हैं तो यही दर्शनशास्त्र कहलाता हैं।

दर्शनशास्त्र में निम्न प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है-

१. विश्व (Universe) क्या है?
२. विश्व का जन्म कैसे हुआ?
३. इसका उद्देश्य क्या है, इसका अन्त कैसे होगा?
४. विश्व में ईश्वर है या नहीं? अगर है तो किस रूप में है?
५. वे दिखाई क्यों नहीं देते? ईश्वर के अस्तित्व ( existence) का सबूत (Proof) क्या है?
६. परम सत्य क्या है? ज्ञान क्या है? इसके साधन कौन-कौन से हैं?
७. आत्मा क्या है? जीव क्या है उसकी संख्या कितनी है?
८. जीवन का लक्ष्य क्या है तथा इसका अन्त कैसे होता है?
९. पुनर्जन्म क्या है? यह क्यों होता है?
१०. मोक्ष क्या होता है? उसकी प्राप्ति कैसे सम्भव है?

इन प्रश्नों को खोजने का कार्य दर्शनशास्त्र करता है।

डॉ. मौलाना अबुल कलाम आजाद ने इस सन्दर्भ में अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "पूर्वीय और पाश्चात्य दर्शनशास्त्र" की इतिहास में कहा "यह विश्व उस प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक के समान है जिसके प्रथम और अन्तिम दो पेज खो गये हैं, दर्शन उन्हीं दो खोए पेजों की खोज में आगे बढ़ता है।" दर्शनशास्त्र सम्पूर्ण जगत के विषय में एक धारणा बनाने का प्रयास करता है तथा मानव जीवन को समझने का प्रयास करता है।

दर्शन का विकास (निर्माण) विचार के आधार पर निर्भर है यह इसके द्वारा विश्व को समझने का प्रयास करता है पश्चिमी दर्शन में सैद्धान्तिक प्रयोजन का प्रधान्य होता है वह स्वतन्त्र चिन्तन (विचार) पर आधारित होता है। इसके विपरीत भारतीय दर्शन आध्यात्मिक दर्शन का प्रधान्य होता है। यह भारतीय दर्शन सत्ता के स्वरूप की खोज करता है तथा उसका लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना होता है। भारतीय दर्शन और धर्म एक-दूसरे के पूरक माने जाते हैं। धर्म आध्यात्मिक सत्य को पाने का प्रमुख उपाय माना जाता है। दर्शन भारत का पुराना शब्द है इसका अर्थ है दृष्टि। दर्शनशास्त्र सम्पूर्ण विश्व से सम्बन्धित है। भारतीय दर्शन चिन्तन, वेद, पुराणों पर आधारित है।

पाश्चात्य दर्शनशास्त्र में विचार करना मनुष्य का महत्वपूर्ण गुण माना जाता है। उसकी एक नियमित विचारधारा नहीं है। इसके फलस्वरूप वह बहुत से क्षेत्रों में ज्ञान रखते हैं। दार्शनिक चिन्तन (Philosophical thinking) भी मानव के विचारों की एक विशेष शाखा है। संक्षेप में पाश्चात्य दृष्टिकोण की परिभाषा निम्न शब्दों में दी जा सकती है "दर्शन मनुष्य का एक निष्पक्ष बौद्धिक प्रयत्न है जिसके द्वारा वह विश्व को सम्पूर्णता में समझने की चेष्टा करता है।"

"Philosophy is a impartial intellectual persuit of human beings by which they try to understand the universe in its whaleness."

पाश्चात्य दृष्टिकोण के अनुसार, दर्शन को हम अलग-अलग रूप में नहीं बाँट सकते हैं। दर्शन सभी का समन्वय (Combination) करके सम्पूर्ण विश्व को एक इकाई के (Unit) के रूप में देखने का प्रयास करता है अतः यह अनेकता में एकता को मानता है।

पाश्चात्य दर्शन, दर्शन को बुद्धि या तर्क (Intellect or reason) के रूप में मानता है। यह कल्पना की अपेक्षा तर्क को मानता है।

प्रमुख पाश्चात्य दर्शनशास्त्री लॉक (Locke) के अनुसार, "दार्शनिक चिन्तक के मनुष्य को अपना मस्तिष्क बिल्कुल साफ रखना चाहिये जिस पर पहले से लिखा कोई विचार न हो।"

पाश्चात्य विद्वानों के अनुसार, मनुष्य के दार्शनिक विचारों का जन्म तभी होता है जब उसमें जिज्ञासा की भावना प्रबल होती है अर्थात् वह हरं वस्तु को जानना चाहता है। संक्षेप में व्यक्ति की प्रकृति जिज्ञासु होती है तथा वह इसे शान्त करने के लिए खोज करता है तथा सत्य का ज्ञान प्राप्त करता है।

वास्तव में सभी विद्वानों का जनक दर्शनशास्त्र ही है परन्तु पहले इसे स्वतन्त्र रूप में स्वीकार नहीं किया जाता था।

डॉ. हर्बट डींगल (Herbert Dingle) के अनुसार - "यदि विज्ञानों के मार्ग पर ठीक-ठीक चला जाए तो उसका अन्त दर्शन में ही होगा।"

इस बात को मानने वाले विद्वानों में जेम्स जीन्स (Sir James Jeans), सर आर्थर एडिंगटन (Sir Arthur Adlington ), ए. एन. ह्वाइटहेड (A. N. Whitehead) आदि विद्वानों ने की।

दर्शन और विज्ञान दोनों का उद्देश्य विश्व को जानना है। भारतीय दर्शनशास्त्रियों ने दर्शन की परिभाषा इन शब्दों में दी।

"सभी प्रकार की अनुभूतियों की तर्कपूर्ण व्याख्या कर उसके आधार पर वास्तविकता का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना अथवा तत्व (Reality) का साक्षात् दर्शन प्राप्त करना ही दर्शनशास्त्र का उद्देश्य है।"

इसलिए भारतीय विज्ञान इसे दर्शन का नाम देकर इसे दर्शनशास्त्र कहते हैं। अगर देखा जाए तो भारतीय व पाश्चात्य विचारधारा में कोई महत्वपूर्ण भारतीय दार्शनिकों ने अनुभूतियों के दो प्रकार बतायें-

१. इन्द्रिय, २. अनेन्द्रिय।

इन्द्रिय अनुभूतियाँ हम ज्ञानेन्द्रियों द्वारा प्राप्त कर सकते हैं।

अनेन्द्रिय अनुभूतियाँ आध्यात्मिक होती है।

भारतीय दर्शन के अनुसार, बुद्धि की पहुँच अन्तिम सत्य नहीं हो सकती। अनुभूतियों की व्याख्या करने के लिए बुद्धि का सहारा लेना पड़ता है। बुद्धि के द्वारा ही आध्यात्मवाद की खोज सम्भव है।

भारतीय दार्शनिक अंतदर्शन को अधिक महत्व देते हैं तो पाश्चात्य दार्शनिक बुद्धि को। पाश्चात्य दृष्टिकोण के अनुसार दार्शनिक विचारों से जिज्ञासा ( Orasity) का जन्म होता है जबकि भारतीय दार्शनिक विचारों का जन्म "दुःख निवारण की इच्छा" से होता है। कुछ विद्वान भारतीय दर्शन को निराशावादी मानते हैं परन्तु यह गलत है।

राधाकृष्णन के अनुसार - "भारतीय दर्शन का प्रारम्भ 'दुःख' से हुआ है परन्तु इसका अंत आशावाद (Optimism) की गोद में जाकर होता है। भारतीय दर्शन में मोक्ष प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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